अलीराजपुर इतिहास - Alirajpur District History in Hindi

अलीराजपुर जिला पश्चिमी मध्य प्रदेश में स्थित है। इस जिले की सीमाएँ गुजरात व महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं को छूती हैं। अलीराजपुर जिले में प्राथमिक रूप से भील, भीलाला, बारेला, मानकर, धाणक व कोटवाल जनजाति के लोगों की बहुलता है। 17 मई 2008 को झाबुआ जिले से कुछ क्षेत्रों को अलग करके जिले का गठन हुआ, जो 2,68,958 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।
अलीराजपुर जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। लक्ष्मणी तीर्थ जहाँ पद्म प्रभु स्वामी की मूर्ति विध्यमान है ।  लक्ष्मणी  तीर्थ जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित है। यह 2000 साल पुराना मंदिर है यहाँ एक बड़ा हॉल स्थित  है, जिसमें 140 रंगीन और कलात्मक पत्थर एवं अभिलेखागार स्थापित है । मंदिर में श्री पद्म प्रभु स्वामी की पद्मसन मुद्रा में एक सफेद पत्थर की मूर्ति स्थापित है । अलीराजपुर राज्य पूर्व में भारत के भोपावर एजेंसी के तहत भारत का रियासत राज्य था। यह गुजरात और महाराष्ट्र के साथ सीमा के निकट मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है। इसमें 836 वर्ग मीटर का क्षेत्र है। यह जिला पूरी तरह से पहाड़ी है, और यहाँ अधिकांश आबादी आदिवासी एवं भील आबादी हैं। जनजातियों के प्रमुख, जिन्हे पूर्व में रियासत के राजा के रूप में जाना जाता था आम तौर पर वे राठौर राजपूत थे। अलीराजपुर में विक्टोरिया पुल 1897  की डायमंड जुबली मनाने के लिए बनाया गया था। 
                 क्षेत्रवार, अलीराजपुर जिला झाबुआ जिले से बड़ा है, वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री द्वारा इसे प्रदेश का एक नया जिला घोषित किया गया।  राजवाड़ा किला एवं फतेह क्लब नामक एक खूबसूरत खेल मैदान शहर के केंद्र में स्थित है। अलीराजपुर विभिन्न प्रकार के व्यापार और व्यापार के लिए भीलों का केंद्र है। अलीराजपुर की स्थलाकृति मुख्य रूप से पहाड़ी है। अलीराजपुर एक ऐसा शहर है जहां निवासरत अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर करती है। इसकी अर्थव्यवस्था प्राथमिक रूप से कृषि प्रयासों पर निर्भर करती है। यदि कृषि व्यापार की बात आती है जब अलीराजपुर में यह व्यापार सभी राज्यों में सबसे बड़ा है। इसके अलावा, "नूर जहां" आम जो अलीराजपुर जिले की एक बहुत ही दुर्लभ विविधता है वर्तमान में "नूर जहां" आम के केवल चार पेड़ वर्तमान में जीवित हैं, जो मात्र अलीराजपुर जिले में पाए जाते हैं. 
अलीराजपुर ज़िला

मध्य प्रदेश में अलीराजपुर ज़िले की अवस्थिति
मध्य प्रदेश भारत
प्रशासनिक प्रभाग
इन्दौर
मुख्यालय
अलीराजपुर
जिले का गठन
17 मई 2008 (झाबुआ से पृथक)
क्षेत्रफल
2,165 कि॰मी2 (836 वर्ग मील)
जनसंख्या
728677 (2011)
229
37.2 %
1009
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र
रतलाम
विधानसभा सीटें
1. अलीराजपुर, 2. जोबट
तहसील
1. अलीराजपुर 2. जोबट 3. चन्द्रशेखर आजाद नगर 4. सोण्डवा
विकास खण्ड
1. आलीराजपुुर 2. सोण्डवा 3. जोबट 4. उदयगड़ 5. चन्द्रशेखर आजादनगर 6. कट्ठीवाड़ा
ग्राम पंचायत
288
पुलिस अनुभाग/थाना/चौकी
अनुभाग 02, थाना 12, चौकी 10
नगरपालिका
अलिराजपुर
नगरपंचायत
1.भाभरा, 2.जोबट
स्वास्थ्य केन्द्र
जिला स्वास्थ्य केन्द्र 01, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र 05, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र 12, उपस्वास्थ्य केन्द्र 159
ग्रामों की संख्या
551
नदियां
सुक्कड़, हथनी
भाषाएं
हिंदी, राठवी, भीली
प्रमुख
भगोरिया पर्व
मुख्य आकर्षण
**कट्ठीवाड़ा जंगल, मालवई माता मंदिर, जैन पवित्र तीर्थ लक्ष्मणी, विंध्य पर्वत, काजलरानी मंदिर, कट्ठीवाड़ा झरना, भाबरा, मालवई, आमखुट
आधिकारिक जालस्थल
वैसे तो प्रारम्भ से ही आदीवासी बहुल समुदाय रहे अलीराजपुर क्षेत्र पर आदिवासी राजाओं का राज रहा परंतु 15 शताब्दी में जोधपुर के राणा राठोर नरेश के वंशज आनंददेव ने उस समय जमुरा डोडीया भील तथा उसकी फ़ौज को मार कर उसके कब्ज़े के सारे इलाकों को अपने अधिकार में कर लिया जिसकी हदें उत्तर दिशा की ओर झाबुआ-दाहोद के तालाब तक, पश्चिम में शिवराजपुर गुजरात तक दक्षिण में नर्मदा नदी तक तथा पूर्व में हथिनी नदी के किनारे धोलगढ तक थी। आनंददेव को शिकार खेलने का बहुत शौक था। एक दिन आनंददेव शिकार खेलते-खेलते आली के जंगल की तरफ चले गये जहाँ उस समय अलिया भील का राज्य था। इसी जगह राजा को एक खरगोश दिखाई पड़ा उसके पिछे मुड़कर आनंददेव की घुरकर देखा ओर नजरो के सामने से गायब हो गया। तब राजा आनंद देव ने महसुस किया कि यह कोई चमत्कारी स्थान होना चाहिए जो खुशनुमा ओर बहुत रोनक वाली जगह है। उसी समय राजा आनंददेव ने इस स्थान पर एक किला सन् 1438 ई० में माघ सुदी पंचमी शनिवार के दिन बसाया। वह उसका नाम आनंदावली रखा, इसके पश्चात अलिया भील युद्ध मे मारा गया तथा आनंद देव का एक छत्र राज्य स्थापित हो गया। 
          इसके बाद राजा आनंद देव ने अपनी राजधानी मोटीपोल से आली स्थानातरित कर दी तथा इसका नाम आनंदावली रखा। राजा आनंददेव ने अपने छोटे भाई इन्द्रदेव को सन् 1440 में फुलमाल नामक गाॅंव जागीर में दिया और उसे अपना प्रधानमंत्री बनाया। इसके बाद राजा ने अपने अमीर उमराव तथा भाई बन्दुओ को अपने अधिन क्षेत्र के परगनो का बटवारा कर दिया जिसके अनुसार वजेसिंह को आमखुट परगना, मानसिंह सोलंकी को डही परगना, भुलजी को झिरण परगना, अधिकरणदेव जी को मथवाड़ परगना, तथा सारगदेव जाधव को कट्ठीवाड़ा दे दिया। ये पाॅंचो उमराव कई सालो तक आनंदावली राज्य के अधिन रहे। परंतु धीरे-धीरे डही, मथवाड़ और कट्ठीवाड़ा परगने अलग हो गये। परंतु झिरण व आमखुट की वंश न चलने से दोनो ही आनंदावली के अधीन रहे। 
         राजा आनंददेव के बाद उसका पुत्र चचलदेव गददी पर बैठा। उसके दो पुत्र हुए, गुगलदेव व केशरदेव अपने पिता चचलदेव की हत्या पर गुगलदेव सन् 1470 में यहाॅं का राजा बन गया। उधर छोटे भाई केशरदेव ने अपने पिता के जीवित रहते ही सन् 1465 में राज्य के उत्तर पूर्व में जोबट पर अपना कब्जा कर लिया था। उधर आली के राजा गुगलदेव का पुत्र कृष्णादेव निःसंतान मरा तक कृष्णादेव का भतीजा बंच्छराज राजसिहासन पर बैठा बंच्छराज के चार पुत्र थे। पहला पुत्र दिपसेन था इसने अपने भाई संबलसिंह को 07 मई 1665 को सोण्डवा गाव की अलग से जागीर दे दी थी। दिपसेन का पुत्र सुरतसिंह हुआ जिसने आली राज्य का बहुत विस्तार किया सुरतदेव के 4 पुत्र हुए पहला पहाडदेव दुसरा प्रतापदेव (प्रतापसिंह प्रथम) तीसरा दौलसिंह व चैथा पुत्र अभयदेव थे। इनमे से सुरतदेव की मृत्यू के पश्चात बडा पुत्र पहाडसिह राजगददी पर बैठा इस परिस्थिति ने प्रतापसिंह प्रथम ने भाई के पास रहना उचित नही समझा ओर महेश्वर चला गया। तथा अपनी पहचान छुपाकर 5 साल तक अहिल्याबाई होलकर के पास रहे जब अहिल्याबाई को यह पता चला कि प्रातापसिंह (प्रथम) आली के राजा का भाई है तो उन्हे अपना मुहबोला भाई बनाया व वापस उन्हे आली भेज दिया। आली वापसी होने पर प्रतापसिंह प्रथम सत्ता प्राप्त करने की योजना बनाकर लगातार कार्य किया अन्नतः दिनांक 29 जूलाई सन् 1765 को प्रतापसिंह प्रथम ने अपने आप को आली राज्य का राजा घोषित कर दिया। 
Alirajpur Flag
           राजा प्रतापसिंह का विवाह गुजरात के धरमपुरी राज्य की सिसोदिया राजकुमारी से हुआ। राज प्रातापसिंह ने अपने सगे भाई दोलतसिंह को सन् 1777 में भाभरा रियासत प्रदान की उधर मथवाड़ भी एक प्रथक रियासत होकर यहाॅं ठाकुर रामसिंह शासक थे। सन् 1797 ई0 में मुसाफिर मकरानी वास्तविक नाम दुरमोहम्मद खान अपने साथीगण बेतुला मकरानी ओर हासम मकरानी अफगानिस्तान की सीमा से लगे मकरान प्रांत से आकर आली राज्य के सेवक नियुक्त हुए। श्री मुसाफिर मकरानी आजीवन राज्य के बहुत ही वफादार सेवक रहे। ओर कई मरतबा उन्होने राज्य की आक्रमणों, हमलो आदि से रक्षा भी की इस के बाद प्रतापसिंह प्रथम का शासन छोटे मोटे विवादो व आपसी आक्रमणो के बावजुद चलता रहा इसके बाद सन् 1800 मे चेत्र वदी अष्ठमी शनिवार को आली रीयासत की राजधानी आली से राजपुर स्थांतरित कर दि गई।
         महाराज प्रताप सिह पृथम की मृत्यु के पश्चात महारानी प्रतापकुॅवर बाई के गृभ से सन 1809 में जसन्त सिंह का जन्म हुआ। पश्चात महाराज जसवंत सिह का शासन चला व सन 1861 में उनकी मृत्यु हो गई। जसवंत सिह की मृत्यु के पश्चात इनके पुत्र गंगदेव राजगद्दी पर बैठे तथा सन 1862 से 1871 तक अलीराजपुर में राज्य किया इनकी मृत्यु पश्चात इनके भाई रूप देव ने 1871 से 1881 तक राज्य किया ओर वे भी एक वर्ष पश्चात मृत्यु को प्राप्त हुए। रूप देवजी की कोई संतान न होने से सोण्डवा ठाकुर परिवार के कालुबाबा को पोत्र व चंद्रसिह के पुत्र विजय सिह को अलीराजपुर लाकर राजगद्दी पर बैठाया इनहोने सन 1890 तक अलीराजपुर राज्य पर राज कीया और इनकी भी कोई संतान न होने से पुनः सोण्डवा के कालुबाबा के पोत्र व दुसरे पुत्र भगवान सिह के पुत्र प्रतापसिह द्वितीय को सोण्डवा से लाकर विधि विधान से राजतीलक कर अलीराजपुर राजगद्दी पर बैठाया। हिजहाईनेस प्रताप सिह द्वितीय का जन्म 12 सिंतबर सन 1881 में हुआ व उनका राजतीलक 10 जुन सन 1891 में किया गया महाराजा प्रताप सिह द्वितीय की शिक्षा राजकोट के राजकुमार कालेज मे हुई। युवा हेाने पर सन 1901 में उन्हे अलीराजपुर राज्य के नानपुर व खट्टाली के परगनो के शासन का भार सौपा गया तथा एक साल बाद ही उन्हे पृथम श्रेणी मजिस्टेट के अधिकार प्रदान किये गये। दिनांक 27 जनवरी सन 1904 में महाराजा श्री प्रताप सिह को शाासन संचालन के समस्त अधिकार प्रदान किये गये। 
       04 मार्च 1908 को महाराजा प्रतापसिह का विवाह कट्ठीवाडा के ठाकुर श्री बहादुरसिंह जादव की सुपूत्री श्रीमती रानी राजकुॅवर बाई के साथ सम्पन्न हुआ। महाराजा प्रतापसिंह की बडी रानी के गर्भ से संवत 1961 की श्रावण सुदी ग्यारस केा प्रिंस फतेह सिह जी का जन्म हुआ। महाराज फतेह सिह जी की शिक्षा डेली कालेज इन्दौर व राजकुमार कालेज राजकोट से हुई। प्रिंस फतेह सिह जी को इतीहास, साहित्य, शिकार, पौलो व क्रिकेट खलने का बडा शौक था। महाराजा प्रतापसिह जी ने अलीराजपुर नगर मे इसी समय मे बडे व सुन्दर खैल मैदान वर्तमान मे कलेक्टर कार्यालय के सामने स्थित फतेह क्लब मैदान, गेस्ट हाउस, प्रताप भवन, हास्पीटल तथा स्कुल बनवाए, ओर नगर नियोजन की सुन्दर रचना की। प्रिंस फतेहसिह जी का विवाह खिची कुल के हिज हाईनेस महाराज सर रणजीतसिहं जी के स्टेट के बारिया नरेश जी की राजकुमारी सो राजकुमारी राजेतुकुवंरबाई के साथ दिनांक 07 मई सन 1922 में धुमधाम से हुआ।
           प्रिन्स फतेहसिंह जी की 6 संताने हुई इनमें 3 राजकुमार व 3 राजकुमारी थी। इनमे महाराज सुरेन्द्रजी का जन्म 17 मार्च सन 1923 को हुआ तथा महाराज कमलेन्द्रसिंह अभी जीवित है। राजकुमारीयों की शादीयाॅं कर दी गई थी। राजाप्रतापसिंह द्वितीय बहुत सदिप, परोपकारी व अंग्रेजी हुकुमत के खास थे। 03 जून 1915 को दिल्ली सम्राट ने अपने जन्म दिवस पर प्रतापसिंह जी बहादुर के0सी0आई की उच्च उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया सन 1917 में राजा साहब ने सेंट जान्स एम्बुलेंस एसोशिएसन की आर्थिक सहायता की इस सहायता व वफादारी से प्रसन्न होकर दिनांक 01 जनवरी 1920 को राजा साहब की सलामी 9 तोपो से बडाकर 11 तोप की सलामी कर दी गई। साथ ही एक वर्ष बाद दिनांक 01 जनवरी 1921 को अग्रेज सरकारी द्वारा पुस्त-दर-पुस्त के लिए हिज हाईनेस उपाधि स्थाई करते हुए महाराजा प्रतापसिंह द्वितीय सम्मानित भी किया। इस समय अलीराजपुर की आबादी 5000 हजार से कुछ अधिक थी। यहाॅं के रास्ते व बाजारा चैडे़ तथा सीधे हवादार होकर सुन्दर मकानों से युक्त मनभावन नगर था। हिज हाईनेस श्री प्रतापसिंह बड़े ही निर्भीक व दयालु शासक थे बावजूद जो डाकु व चोर लुटेरे दिन दहाडे डाका डालते उन्हेें कठोर दण्ड दिया जाता था। 
         अलीराजपुर रियासत की जनसंख्या 12 हजार थी जिसमें 569 ईसाई धर्म के अंग्रेज, पादरी लोग थे। अधिकतर ईसाई भील जाति से कन्वर्टेड थे ये लोग आमखंुट, अलीराजपुर सर्दी, मेंढा आदि जगह स्थापित थे। धर्म प्रचारक पादरियों के पास खेती बाड़ी के लिए राज्य द्वारा दी गई बहुत सी भूमि थी। दिनांक 1 फरवरी 1924 में अंग्रेजो के नियमानुसार स्टेट फोर्सेस (फोज) की स्थापना की गई थी जो प्रताप इन्फेन्ट्री कहलाती थी। इसमे गोरखे व सैनिक बेंड भी थे। हिज हाईनेस महाराज श्री प्रतापसिंह जी के शासन काल में खेलो के विकास पर बहुत ध्यान दिया गया। अलीराजपुर नगर में क्रिकेट का विशाल मैदान (वर्तमान में फतेह क्लब मैदान), पोलो खेल के लिए विषाल मैदान के साथ ही बेडमेन्टन के लिए लकडी की उच्च किस्म से तैयार किया गया बेडमिंटन हाल (वर्तमान मे भी अस्तित्व में) पूरे देश मे प्रसिध्द थे। तत्कालिन समय में विजयनगर के महाराजा राजकुमार अपनी रियासत के खर्चे से टीम तैयार करते थे। बहुधा इस टीम में अलीराजपुर रियासत के 5-6 खिलाड़ी रहते थे। जिनमें महाराज कुमार श्री फतेसिहजी, श्री शाहबुदीन मकरानी, श्री सईदुदीन मकरानी आदि थे। इस प्रकार तत्कालिन विजयनगर अलीराजपुर तथा पटियाला रियासत ने क्रिकेट खेल को आगे बढ़ाने व देश में प्रसार करने में मिल के पत्थर का कार्य किया। 
        इस प्रकार महाराजा प्रतापसिंह जी द्वितीय ने सन 1948 (आजादी तक ) अर्थात 57 वर्षों तक तक अलीराजपुर रियासत पर सफलतापूर्वक शासन दिया उनके निधन के पष्चात् उनके पोत्र व महाराजा फतेसिंहजी के पुत्र श्री सुरेन्द्रसिंह जी महाराज साहब का राजतिलक हुआ। उसके बाद अलीराजपुर राज्य का भारतीय संघ में विलय हो गया लेकिन हिज हाईनेस श्री सुरेन्द्रसिंह जी हमेशा बापजी के नाम से लोकप्रिय रहें व वे पत्रों पर पद हस्ताक्षर भी इसी नाम से करते थे। वैसे महाराजा सुरेन्द्रसिंह जी एक अत्यधिक शिक्षित व्यक्ति होकर उन्होने आई0सी0एस0 की परीक्षा भी उत्तीर्ण की थी। वे भारतीय विदेश सेवा में अनेकों देषों में भारतीय राजदूत के रूप में अपनी सेवाएॅं दे चुकंे। देष के पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू व श्रीमती इंदिरा गाँधी से उनके पारिवारिक संबंध रहें। सेवानिवृति के बाद भी महाराजा सुरेन्द्रसिंहजी काफी सक्रियता पूर्वक सेवा कार्यों में लगे रहें। महाराजा सुरेन्द्रसिंहजी एक उदारवादी एवं एक आतिथ्य प्रिय शक्स थे। सन् 1947 में देश की आजादी के बाद 1948 में अलीराजपुर रियासत के भारतीय संघ में विलय हो जाने के बाद यह क्षेत्र प्रषासनिक रूप से मध्य भारत के अधीन हो गया।

आदर्श स्थल

 ग्राम भावरा जहाँ गैर समझौतावादी धारा के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ।

वन सम्पदा

आदिवासी एवं वन अलग-अलग विषय नहीं है, बिना जंगल के आदिवासी नहीं और बिना आदिवासी के बिला जंगल अधूरे हैं। आदिवासी समुदाय आज भी अपनी सीमाओं लगे नए पौधों व नई कोमल घास जो बारिश में उगे हैं कि पूजा से पहले उसके इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगाता है। यहाँ तक कि घर के मवेशी नए पत्ते व नई घास का चारा खाकर आते हैं उनके गोबर का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते हैं। नए पौधों व नई घास की पूजा को ‘निल्फी’ ‘दिवासा’ के नाम से जाना जाता है। इसे त्यौहार के रूप में मनाते है। यह पूजा आदिवासी समाज के रीति रीवाज का हिस्सा है। हमारे देश में न्यूनतम समय में अधिकतम दोहन करने के लिये अंग्रजों नें ‘भारतीय वन अधिनियम 1927’ बनाया था। औपनिवेशिक वन नीति का व्यापारिक एवं औद्योगिक झुकाव आजाद भारत में भी यथावत रखने के कारण बड़े पैमाने पर वन एवं वन सम्पदा नष्ट होती गई।

खनिज सम्पदा

जिले में डोलोमाइट के पत्थर बहुत ही ज्यादा मात्रा में है। इन पत्थरों को खदानों से निकाला जाता है। इन पत्थरों को पीसने के कारखाने भी मौजूद है। जल संसाधन अलीराजपुर जिले की सबसे बड़ी नदी नर्मदा है। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में है। समुद्री तट से 1057 मीटर की ऊँचाई से शहडोल जिले अमरकंटक से निकली इसकी कुल लम्बाई 1312 किमी है। यह आलीराजपुर जिले होती हुई भड़ूच (गुजरात) में मिलती है।

जनजातीय लोग

जिले की आबादी के 87 प्रतिशत लोग जनजातीय हैं। भील, भिलाला, मानकर, धाणक उपजातियाँ हैं। जनजातीय लोग दूर दराज पहाड़ों में बसे हैं। इनकी बसाहट भिन्न है। वे अपने-अपने खेतों पर मकान बनाकर रहते है जो पूरे गाँव के क्षेत्रफल में दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं। जिसके कारण सरकार बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं करवा पाती।

रीति रिवाज

यहाँ के जनजातीय लोगों का रीति रिवाज और धार्मिक मान्यता का किसी धर्म से मेल नहीं है। मूर्ति पूजा का चलन नहीं हैं। वे पहाड़, झरना और बाबादेव की पूजा करते हैं।

फसलें

जुवार, बाजरा, मक्का, कुलथिया आदि खरीफ एवं गेहूँ, मक्का रबि की यहाँ की मुख्य फसलें हैं।

सामूहिकता

आदिवासी समाज में ढास और पड़जिया की बहुत ही अच्छी परम्परा है। ढास एवं पड़जिया के दौरान सारे गाँव के लोग मिलकर किसी भी व्यक्ति के बड़े-से-बड़े काम को (जैसे मकान बनाना, खेत से फसल एकत्र करना आदि) बगैर पैसा लिये कर देते हैं। बदले में सिर्फ खाना खिलाना पड़ता है। आदिवासी समाज की यह परम्परा एक मिसाल है।

जाति प्रथा

जनजातीय लोगों में भी जाति के आधार पर ऊँच-नीच व छुआ-छूत की मान्यता है। भील, मानकर, धाणक, कोटवाल, चमार, मेंहतर जाति के लोगों को निचा मानते है। वे इन जाति के लोगों के हाथों से बना खाना नहीं खाते। भिलाला व पटलिया जाति के लोग अपने को ऊँचा मानते हैं।

कुप्रथा

समाज में किसी भी व्यक्ति की मौत होती है तो उनकी धारणा है कि इसे डाकण ने खा लिया। वे मृत्यु का कारण बीमारी व प्राकृतिक न मानते हुए उसे डाकण के मत्थे मढ़ देते हैं। कहते हैं कि डाकण ने इसका कलेजा खा लिया है। किसी भी प्रकार की बीमारी को वह डाकण की करतूत मानते है। यहाँ तक की अपने पालतू जानवरों की मृत्यु का कारण भी डाकण को मानते हैं।
वे गाँव की किसी भी बुजुर्ग महिला या विचित्र महिला को डाकण मानते हैं। जिस महिला पर डाकण की शंका होती है उसकी निर्मम हत्या तक कर दी जाती है। पलायन इस जिले की मुख्य समस्या है। गाँव में रोज़गार नहीं मिलने के कारण पूरे जिले के आदिवासी लोग पास के गुजरात राज्य में पलायन कर जाते हैं। गाँव में आदिवासी लोगों के पास आजीविका के छोटे-छोटे खेत है। इन खेतों से वर्षभर के लिये अपने परिवार का भोजन खर्च नहीं निकल पाता है। इन कारणों से पूरे जिले के आदिवासी लोग अपने परिवार सहित छोटे-छोटे बच्चों के साथ आजीविका के लिये बड़े शहरों की ओर कूच कर जाते हैं। पलायन के कारण बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। महात्मा गाँधी रोज़गार गारंटी योजना भी इन परिवारों को रोक नहीं पाई है।
       सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत लोगों को मिलने वाला सस्ते अनाज की कालाबाजारी हो जाती है। जिससे लोगों को कम कीमत में अनाज नहीं मिल पाता है। गाँव में भयानक गरीबी है। गरीब परिवार सन्तुलित आहार नहीं खा पाता है। एकीकृत महिला एवं बाल विकास परियोजना द्वारा 6 माह से 3 वर्ष के बच्चे, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को पूरक पोषण आहार (बाल आहार) बालवाड़ी के माध्यम से वितरित किया जाता है। इस पूरक पोषण आहार का बालवाड़ी व आँगनवाड़ी केन्द्रों में वितरण नहीं हो रहा है। शालाओं में मिलने वाला मध्यान्ह भोजन भी नहीं मिल पाता है। उपरोक्त इन कारणों से जिले में कुपोषण की संख्या अत्यधिक है। एकीकृत महिला एवं बाल विकास परियोजना के आँकड़ों के मुताबिक जिले में लगभग 4500 से अधिक बच्चे कुपोषित है। फ्लोरोसिस रोकथाम के सरकारी प्रयास राष्ट्रीय एवं राज्यव्यापी कार्यक्रम के तहत 34 ग्रामों में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना, फ्लोरोसिस नियन्त्रण व लोगों के स्वास्थ्य सुधार के लिये एक अभियान चलाने के लिये एक योजना तैयार की गई। सन् 1993-1994 को शहर के कुछ शिक्षित लोगों को योजना के बारे में पता चला। स्थानीय स्तर पर इस अभियान की जानकारी गिनती के लोगों तक सीमित रही।

आदिवासियों के 110 रेडियो केंद्र 
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की 105वीं जयंती के मौके पर अलीराजपुर जिले के भाबरा में जुलाई 2011 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा दुनिया का पहला भीली सामुदायिक रेडियो केन्द्र शुरू किया गया , इसके बाद 9 अन्य सामुदायिक जनजातीय रेडियो केन्द्र का  प्रसारण शुरू किया गया । भीली के अलावा ये केन्द्र बैगा, कोरक, सहरिया, गोंड और भारिया बहुल इलाकों में शुरू होंगे। राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों में 110 ऐसे केन्द्र बनने हैं।

1. लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग (फ्लोराइड नियन्त्रण) 

सन् 1998 में झाबुआ जिले में फ्लोराइड नियन्त्रण के लिये एक डिवीजन की स्थापना की गई। जिसका कार्यालय अलीराजपुर तहसील मुख्यालय में बनाया गया। तब अलीराजपुर झाबुआ जिले की तहसील था। फ्लोराइड रहित पानी मुहैया कराने के लिये अलीराजपुर ब्लॉक के 34 ग्रामों को शुद्ध पेयजल वितरण के लिये परियोजना की शुरुआत की गई। परियोजना के तहत अलीराजपुर से 40 किलो मीटर दूर ग्राम बेहड़वा में हथिनी नदी से पाइप लाइन के जरिए प्रभावित गाँवों में पेयजल वितरण करने की परियोजना शुरू की गई। दो फिल्टर प्लांट, पहला बेहड़वा एवं दूसरा खरपई में बनाया गया है। पाणी में फ्लोराइड की मात्रा की जाँच के लिये एक लेबोरेटरी है। इस लैब से आज तक एक भी गाँव से पानी का सैम्पल लेकर जाँच नहीं हो पाई है। शासन की अदूरदर्शिता के कारण इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना का लाभ प्रभावित आदिवासी परिवारों को नहीं मिल पाया। ग्रामीण आदिवासियों की असंगठित आवाज शासन प्रशासन के नुमाइन्दों द्वारा अनसुनी कर दी जाती है।
     सभी प्रभावित गाँवों में पानी की सप्लाई नहीं हो रही है। स्टेट हाईवे नम्बर 26 पर ग्राम नानपुर ब्लाक मुख्यालय पर पानी सप्लाई की जा रही है। इसी हाईवे पर ग्राम फाटा के पटेल फलिया की पाँच टंकियो में दो दिनों के अन्तराल में पानी का वितरण हो रहा है। इसी गाँव में भयड़िया फलिया, चैंगड़ फलिया, मसाणिया फलिया एवं निंगवाल फलिया में पानी का वितरण नहीं हो रहा है। ग्राम बेगड़ी में लगभग 5000 लीटर की क्षमता वाली एक पानी की टंकी निर्माण आस-पास के प्रभावित गाँव में पेयजल वितरण के लिये बनाई गई है, लेकिन उस टंकी में आज तक पानी नहीं पहुँचा है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार 34 गाँव फ्लोराइड प्रभावितों की सूची में शामिल हैं। जिले के कट्ठीवाडा, चन्द्र शेखर आजाद नगर (भाबरा) एवं जोबट ब्लाक के कई सारे गाँवों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा मौजुद है। इन गाँवों में शासकीय रिकार्ड में अभी भी पानी सप्लाई होना बताया गया है। 34 ग्रामों में समूह नल जल प्रदाय योजना के संचालन संधारण कार्य करने के लिये विभाग में दो निजी वाहन टाटा 407 एवं पिकअप अटैच किये गए हैं। इन 34 गाँवों में से नानपुर गाँव में ही पानी का सप्लाई हो रहा है। बाकी किसी एक भी गाँव में पीने का पानी नहीं पहुँच रहा है।
     सन् 2009 में इस लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी फ्लोरोसिस नियन्त्रण अनुभाग को खत्म कर दिया गया। वर्तमान लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग जिला इस कार्य को संचालित कर रहा है। जिले में लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग तीन अनुभागों में विभाजित है। अलीराजपुर, जोबट एवं चन्द्रशेखर आजाद नगर (भाबरा) के रूप में विभाजित है। जिले में लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग ने फ्लोरोसिस बीमारी की रोकथाम के लिये स्थानीय समुदाय के साथ अभियान के रूप में नहीं चलाया जा रहा है। राज्यव्यापी अभियान भी नहीं चल रहा है। युक्त पानी के शुद्धीकरण के लिये कोई भी कार्यक्रम नहीं चलाया गया। फ्लोराइड प्रभावित इन गाँवों में आज भी शासकीय हैण्डपम्पों को बन्द नहीं किया गया है।

2. स्वास्थ्य विभाग

जिले में कार्यरत जिला स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं उप-स्वास्थ्य केन्द्र द्वारा फ्लोरोसिस नियन्त्रण व लोगों के स्वास्थ्य सुधार के लिये समुदाय के साथ किसी भी प्रकार का कार्य नहीं किया गया। जिला स्वास्थ्य केन्द्र अलीराजपुर के सिलिकोसिस एवं फ्लोरोसिस बीमारी के प्रभारी डाक्टर से मुलाकात करने पर उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग से फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिये कोई भी कार्य नहीं किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के पास फ्लोराइड से प्रभावित गाँवों की अपनी सूची नहीं है और न ही प्रभावितों का सर्वेक्षण का आँकड़ा है। जिला अस्पताल ने एक प्रस्ताव तैयार कर सरकार को भेजा है। जिसमें फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिये अलग से काम करने वाले कर्मचारियों को नियुक्ति प्रस्तावित है एवं पानी का सैम्पल टेस्ट के लिये प्रयोगशाला के स्थापना की माँग की गई है। अभी तक प्रस्ताव पास नहीं हुआ है।

3. गैर सरकारी संगठन

कल्पान्तर शिक्षण एवं अनुसन्धान केन्द्र ने नवागत जिले के कलेक्टर श्री चन्द्रशेखर बोरकर को अवगत कराया गया कि लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग द्वारा प्रभावित गाँवों में सुचारू रूप से पानी का वितरण करने बीमारी के बचाव के लिये जन जागृति चलाए जाने, स्वास्थ्य विभाग को संवेदनशील करने की जरूरत के बारे में चर्चा की गई थी। जिला कलेक्टर ने लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग को गाँव में पोस्टर, पर्चे वितरण करने के निर्देश दिए थे। इसके अलावा किसी भी गैर सरकारी संगठन ने प्रभावित गाँवों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने, फ्लोरोसिस नियन्त्रण के लिये, एवं लोगों के स्वास्थ्य सुधार के सतत कार्य नहीं किया गया।

 बीमारी के बारे में जानकारी का अभाव
प्रभावित अधिकतर लोगों को यह नहीं पता है कि फ्लोराइड क्या है? फ्लोराइड हमारे शरीर में कैसे पहुँचता है? हमारे शरीर के किन अंगों को यह नुकसान पहुँचाते हैं? या फ्लोराइड से कौन सी बीमारी होती है? उन्हें यह भी पता नहीं है कि जिन जलस्रोतों का वे पानी पीने के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं उसका पानी पीने योग्य नहीं है। यह पानी हमारे स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। हमारे जलस्रोतों में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। गाँवों में अशिक्षा के कारण लोग फ्लोराइड के घातक असर के बारे में अनभिज्ञ हैं। ग्रामीण अशिक्षित परिवार लोक यान्त्रिकी विभाग व स्वास्थ्य विभाग से पानी की गुणवत्ता के बारे में पूछताछ तक नहीं करते। लोक यान्त्रिकी विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा पानी की गुणवत्ता के बारे में लोगों को नहीं बताया जाता है। गाँव में अशिक्षा के कारण जलजनित बीमारी के शिकार हो जाते हैं।

जानकारी का अभाव है। 
 दाँत पीले होने का कारण लोगों का मत है यह जेनेटिक है। जिन लोगों के दाँत पीले हैं उन्हें लोग केसरिया दाँत कहते हैं। लोक यान्त्रिकी विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा पानी की गुणवत्ता के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी लोगों तक नहीं पहुँचाई जाती है। स्वास्थ्य विभाग के स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा फ्लोरोसिस बीमारी के गम्भीरता के बारे में और न ही इस बीमारी के रोकथाम के लिये स्थानीय समुदाय के साथ सामूहिक प्रयास किये जाते हैं।
           गरीबी के कारण लोग कैल्शियम, लौह तत्व, विटामिन सी जैसे पौष्टिक आहार युक्त भोजन का उपयोग नहीं कर सकता है। इसी गरीबी के कारण लोग फ्लोराइड युक्त जल को शुद्धिकरण यन्त्र से अपने पेयजल को शुद्ध नहीं कर पाता है। मसलन लोग पानी की बगैर जाँच किये किसी भी प्रकार के पानी पेयजल के रूप इस्तेमाल करता है। जानकारी के अभाव में लोग नहीं जानते कि किन चीजों को खाने से परहेज रखना चाहिए। युवा वर्ग का मानना है हमारे दाँत पीले होने के कारण शादी में दिक्कतें होती हैं। इसलिये गाँव के युवा अपने दाँतों का पीलापन दूर करने के लिये दाँतों के डाक्टर का सहारा लेते है। लेकिन दाँत के डाक्टर भी इस समस्या से छुटकारा नहीं दिला पा रहे हैं। गाँव के अधिकतर युवा वर्ग की राय है कि इस समस्या से हमें निजात चाहिए। वे चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी को फ्लोरोसिस से बचाना है। लोगों की इस बीमारी के साथ कई सारे पहलू एक दूसरे से जुड़े हुए है। दाँतों के फ्लारोसिस से प्रभावित युवा लोग इस कुरूपता से छुटकारा पाना चाहते हैं। लेकिन उपरोक्त कारणों का समाधान किये बगैर लोग इस बीमारी से छुटकारा नहीं पा सकते है। बचने के उपायों के बारे में सोच रहे है लेकिन कुछ कर पाने स्थिति में नहीं है?

स्कूल का दौरा

फ्लोरोसिस से सबसे ज्यादा प्रभावित ग्राम इस्डू की प्राथमिकशाला का दौरा किया गया। वहाँ पर बच्चों में दाँतो के फ्लोरोसिस का प्रतिशत ज्यादा पाया गया। प्राथमिकशाला के आँगन में लगे हैण्डपम्प के पानी का सैम्पल टेस्ट किया जिसमें बहुत अधिक मात्रा में फ्लोराइड पाया गया। इसी हैण्डपम्प से पीने का पानी मोहल्ले के लोग भी इस्तेमाल करते हैं। इस फलिये कि युवा लड़कियों के उनके दाँतों में पीलापन मौजूद पाया गया है।
        मध्यप्रदेश में जनगणना संचालन निदेशालय द्वारा अलीराजपुर जिले की आधिकारिक जनगणना 2011 का विवरण जारी किया गया है। 2011 में, अलीराजपुर की जनसंख्या 728,999 थी, जिसमें से पुरुष और महिला क्रमशः 362,542 और 366,457 थी। 2001 की जनगणना में, अलीराजपुर की जनसंख्या 610,275 थी, जिसमें पुरुष 305912 थे और शेष 304,363 महिलाएं थीं। अलीराजपुर जिले की आबादी महाराष्ट्र की  कुल आबादी का 1.00 प्रतिशत है। 2001 की जनगणना में, अलीराजपुर जिले का यह आंकड़ा महाराष्ट्र जनसंख्या का 1.01 प्रतिशत था।  2001 के अनुसार जिले की कुल आबादी में 19.45 प्रतिशत का परिवर्तन हुआ है । 
अलीराजपुर जिला घनत्व 2011
जनगणना 2011 द्वारा जारी डेटा, बताता है कि 2011 तक अलीराजपुर जिले की घनत्व 229 प्रति वर्ग किलोमीटर प्रति है। 2001 में, अलीराजपुर जिला घनत्व 192 प्रति वर्ग किलोमीटर प्रति व्यक्ति था। अलीराजपुर जिले में 3,182 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र  था ।
अलीराजपुर साक्षरता दर 2011
2011 में अलीराजपुर जिले की औसत साक्षरता दर 36.10 थी, जो 2001 की 31.10 के मुकाबले 36.10 थी। लिंग के अनुसार, पुरुष और महिला साक्षरता क्रमशः 42.02 और 30.29 थी, तो क्रमश 2001 की जनगणना के लिए, अलीराजपुर जिले में ही आंकड़े 40.18 और 22.01 पर थे। अलीराजपुर जिले में कुल साक्षर संख्या 209,754 थी, जिसमें से पुरुष और महिला क्रमशः 120,905 और 88,894 थी। 2001 में, अलीराजपुर जिले में यह आंकड़ा 145,743 था ।
अलीराजपुर लिंग अनुपात 2011
अलीराजपुर में लिंग अनुपात 2001 की जनगणना 995 की तुलना में 1011 प्रति 1000 पुरुष था। जनगणना 2011 निदेशालय की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत में औसत राष्ट्रीय लिंग अनुपात 940 है। 2011 की जनगणना में, 2001 की जनगणना के आंकड़ों के प्रति 1000 लड़कों के लिए 982 लड़कियों की संख्या की तुलना में बाल लिंग अनुपात प्रति 1000 लड़कों में 978 लड़कियां हैं।
अलीराजपुर बाल जनसंख्या 2011
2001 की जनगणना के 141,670 के मुकाबले कुल 147961 बच्चे 0-6 वर्ष से कम थे कुल 147961 पुरुष और महिलाएं क्रमशः 74,818 और 73143 थीं। 2001 की जनगणना के 982 के मुकाबले जनगणना 2011 के अनुसार बाल लिंग अनुपात 978 था। 2011 में, 0-6 से कम बच्चे अलीराजपुर जिले का 20.30 प्रतिशत था वही 2001 में यह 23.21 प्रतिशत था ।
अलीराजपुर बेघर जनगणना
2011 में, कुल 246 परिवार फुटपाथ पर रहते थे या अलीराजपुर जिले में किसी भी छत के बिना थे । 2011 की जनगणना के समय में इनकी संख्या 1,100 थी जो अलीराजपुर जिले की कुल आबादी का लगभग 0.15% है।
अलीराजपुर धर्म-वार डेटा 2011
जातिवार जनसँख्या आंकड़े 
विवरण कुल प्रतिशत
हिंदू 705060 96.72%
मुसलमान 17660 2.42%
ईसाई 4600 0.63%
सिख 65 0.01%
बौद्ध 36 0.00%
जैन 780 0.11%
अन्य लोग 271 0.04%
* Not Stated 527 0.07%
अलीराजपुर जिला शहरी / ग्रामीण 2011
2011 की जनगणना के लिए कुल अलीराजपुर की आबादी में, जिले के शहरी क्षेत्रों में 7.83 प्रतिशत लोग रहते हैं। कुल 57,074 लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से 28,949 पुरुष और 28,125 महिलाएं हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार अलीराजपुर जिले के शहरी क्षेत्र में लिंग अनुपात 972 है। इसी तरह 2011 की जनगणना में अलीराजपुर जिले में बाल लिंग अनुपात 968 था। शहरी क्षेत्र में बाल जनसंख्या (0-6) 8,425 थी जिसमें से पुरुष और महिलाएं 4,282 और 4,143 थीं। अलीराजपुर जिले की यह जनसंख्या आबादी कुल शहरी आबादी का 14.7 9% है। 2011 की जनगणना के अनुसार अलीराजपुर जिले में औसत साक्षरता दर 80.05% है जिसमें पुरुष और महिलाएं क्रमशः 86.48% और 73.43% साक्षर हैं। वास्तविक संख्या में 38,942 लोग शहरी क्षेत्र में साक्षर हैं, जिनमें से पुरुष और महिलाएं क्रमशः 21,331 और 17,611 हैं।
       2011 की जनगणना के अनुसार, अलीराजपुर जिले की 92.17% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली कुल अलीराजपुर जिला जनसंख्या 671,925 है, जिसमें से पुरुष और महिलाएं क्रमशः  333,593 और 338,332 हैं। अलीराजपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में, प्रति 1000 पुरुषों में लिंग अनुपात 1014 है। यदि अलीराजपुर जिले के बाल लिंग अनुपात आंकड़े देखे , तो आंकड़ा प्रति 1000 लड़कों के लिए 978 लड़कियां हैं। 0-6 साल की आयु में बाल जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में 139,536 है, जिनमें से पुरुष 70,536 थे और महिलाएं 69,000 थीं। बच्चे की आबादी में अलीराजपुर की कुल ग्रामीण आबादी का 21.14% हिस्सा है। जिले के ग्रामीण इलाकों में साक्षरता दर जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार 32.08% है। लिंगवार, पुरुष और महिला साक्षरता क्रमशः 37.85 और 26.45 प्रतिशत थी। कुल 170,812 लोग साक्षर थे, जिनमें पुरुष और महिलाएं क्रमशः 99,574 और 71,238 थीं।
विवरण ग्रामीण शहरी
वास्तविक जनसंख्या 671,925 57074
पुरुष 333,593 28949
महिला 338332 28125
लिंग अनुपात (प्रति 1000) 1014 972
बाल लिंग अनुपात (0-6 आयु) 978 968
औसत साक्षरता 32.08% 80.05%
पुरुष साक्षरता 37.85% 86.48%
महिला साक्षरता 26.45% 73.43%
कुल बाल जनसंख्या (0-6 आयु) 139536 8425
पुरुष जनसंख्या (0-6 आयु) 70536 4282
महिला जनसंख्या (0-6 आयु) 69000 4143
साक्षर 170,812 38942
पुरुष साक्षरता 99574 21331
महिला साक्षरता 71238 17611
बाल अनुपात (0-6 आयु) 20.77% 14.76%
लड़कों का अनुपात (0-6 आयु) 21.14% 14.79%
लड़कियों का अनुपात (0-6 आयु) 20.39% 14.73%
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